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________________ १३१ जिवारs पृथ्वीचंद्र राजा तमइ कंठि वरमाला पडी, तेतलइ धूम केतु राजा हुई रीस चडी, रोसें हुड विकराल, धूमकेतु देवता नउ मेत्र स्मरनइ उछा लिई करवाल । १ पांचों उल्लासों के वर्णन उल्लास प्रधान है। प्रकृति का परिगणनात्मक स्वरुप वर्णन :. जेह अटवी माहि माल वाल ईवाल, मालूर खर्जूर, अर्जुन चंदन चंपक बकुल । fafeion सहकार कीचनार जांबू जंबीर वानीर कमवीर कीर केलि कंदम निंब नारिंग मातीवर ग्राम डाडिमी देवदास कुल किलि नाम कुन्नागवल्ली यूथिका मालती माधवी जपा मरुवक दमनक पारदि केतकी मुचकुंद कुंद मंदार मह सेवमी राजगिरि) प्रकृति वर्णन के इस स्थूल स्वरूप में रचनाकार का काव्यात्मक वसन्त वर्णन दृष्टव्य है जहां उसे पूरी प्रकृति हंसती बिलती दिखाई पड़ती है। में प्रकृति का सारा वातावरण ही राम की इन्द्र धनुही कल्पनाओं में इम जाता है रक्षाकार के काव्य कील का निवार देखिए: तिमि कि वसंत, दूर बीतवणड अंत, दक्षिण दिवि त्रीव वाढ वाई विहस वनराई ।-- महरिया सहकार, बंधक उदार, वेल बकुल अमर कुल संकुल, क्लक कीकिक बना।प्रवर प्रियेषु पाल, निर्मल वह विकसित म राता पहात मंत्रीवास, कुंद महमाई, नाम नाम श्रेषिदिति वासी कुसुम रेमि, लोकखने हावि वीमावर मावळ मारं सार मुक्ताफळ बणादार, सवग सुन्दर नगरम पोन पुरंदर परिगीय गवाई दान दिवार विचित्र वाकिक वाजड, रगति मा रंग arat पकि वाद टापत्य इंटई, डीडोई डॉवई, कीलवा ३ बादि जति सीई, कि जो भई जीवत होगा। रचनाकार नेवर्नन में काकारिता की गावा ही विरोधी है। अत्यानुप्रास) arr कीवार का विविध उदाहरणों में रचना की सुन्दरता में पर्याप् योग दिया है। एक होगा १- प्रा ११ का १- वही पृ० १०४ ३- वही० प्र०१०१।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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