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________________ १३३ म स्वर्ग रहित परावनलंका रहित रावन वास्त्ररहित पायक, न्यायरडत नायक, फलरहित वृg तयोरहित मिव वेग रहित रंगम, प्रेमरवि संगम-वस्त्र रहित श्रृंगार, सुवर्ण रहित अलंकार -- चरण रहित बाल, राज्य रहिव भूपाल, स्तंभ रहित प्रासाद, दान रहित मान, पुष्ठि रक्षित कृपाण । जिम पानी रहित सरोवर, विम रत्नमंजरी पाव है न शोम लोक सम यतिकार, सभा, हुई निष्प्रभा । १ इस तरह रचनाकार ने शस्त्र वस्त्र, राजनीत, बुध, श्रृंगार, वीर, सौन्दर्य, रत्न स्वन आदि के विविध वर्णन किए है। वर्णनों की अधिकता तथा अनावश्यक विस्तार से कहीं कहींपाठक का मन उचटने तथा उबने लगता है पर की सूरिजी ने परपरागत शैली का पूरा निर्वाह किया है। कवि का बहुविहोना उसकी प्रतर प्रतिमा का परिचायक है।नाकार के जालान का एक उदाहरण देखिए: जिम कलिकाल प्रवृत्तमानि कारावी ज्ञाति गोलीयई । किसी से ज्ञाति श्री श्रीमाली उसवाल, बाचेरवाल, डी, पुष्पलाल, डीबाबा मेल भाष सुराना, छत्रवाल, दोहिल, सोनी, बडवट, हडेलवाल, पोरुआर, गूजर, मोढ, नागर, जालहटा, डाइवा, कपोल, जांबू वाउडा, बाब, दखरा, करडीया, नामब्रडा, मेवाडा पटेहरा, धरा, नरसिंह, उरा झारल, पंचपर्यय, सिट, कोड, रोकी, अमरवाड़, जिवामी, नीम पाठवा उक्त नगटू, किया श्रीमय बनी कि टाकी लेटा, किरा-पदमावती भाषा में हराना र पाका पत्ती वाढ हरतारा काय सम्बद्धा विरामात गावेना वाला बाकेपनि मामी क megesafe अन्य अनेक वर्मन के साथ करता है मम काव्य की इसी वचनिका रैली पर लिखी गई इसी बात की एक रचना अब बाबीची री वचनिका मीना के लिए इस बमकालीन रचना के एक दो काव्य के उद्धरण नीचे दिए का रहे है: मेरा, जाति १- प्राचीन वैर काव्य संग्रह ० ११६ २- वही ० १२५३- देखिए प्रस्तुत ग्रन्थ क्या कायर हौकिक ममव ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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