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मवि रचनाकार का कौशल, काव्य प्रतिमा व्या वर्षन चमत्कार को देखा जाय तो पृथ्वीकन्द परित लेखक का विदध वागी विलास ही लगता है कमि ने पूरी रचना में एक सुन्दर प्रेम कथा का वर्णन किया है।इस कृति का वृत्त प्रेमाख्यान मूलक है। कवि ने प्रणय कथा को माध्यम बनाकर अपनी बहमनी प्रतिभा का मुन्दर परिचय दिया है। क्यानक के सम वीराज और रत्नर्मजरी है।
पृथ्वीचन्द्र चरित आख्यान के लेखक भाचार्य श्री माणिक्यान्दर र है।.५वीं शताब्दी के प्रसिध महाकवि देवर भरि के येमाई माणिक्य अन्दर चिलम के थे तथा इनके गुरु का नाम संभवतः मेहं था। मानिकी मन्दर मे मूल में कवि हृदय पाया था। मुरिजी का जीवनवृत्त अभी तक प्रसाद ही रहा है। कृति में कहीं भी माषिक्य सुन्दर मरि ने अपने लिए कुछ नहीं कहा है . रचनाकार ने समय, स्थान, और कम का कोई शासब्य उपलब्ध नहीं बावडामक ग्रन्थों में काम होता है कि माणिक्य र पूरि ने गुण वा चरित मलबा घरी क्या संविधाग ब्रत बहुप: क्या पृथ्वीन्द्र परित आदि कई अन्धों की रचना की थी।
माटोय रचना वीचन्द्र परिस पर्याप्त बड़ी रचना है जिसमें लेखक का काव्यात्मक वाविलास है। रमा त वाले प्रकाशित की गाझी, प्राधि गुजराती विवान की बीबी.बाल इसका सम्मान किया था प्रय गाथा को कवि ने मिस्सा पटवावों का कर लिया है। क्याम विस्तार न होकर रखना में वर्ष का विस्तार ही अधिक है। प्रत्येक वर्ष में परिवाना की कि निसरी ।
रबनायासार:
तीच माराम पापपुर नरेश अयोध्या के राया बोमदेव और उनकी कन्या रानी रत्वानेवारी भनुपम सौम्बनी थी। एक बार देवद्वानों प्रागनमा और स्वप्न में बह रत्नमंजरी को देखना
पीचन्द्र से प्राप्त करने की बाला विबा हो मार रत्नमंजरी का स्वयंवर आयोजित साक्षवीचन्द्र को इसकी