________________
३२५
काव्य को कहीं कहीं वाती या वार्तिक नाम से अभिहित भी किया गया है। कई रचनाएं देवी देवताओं के गुण वर्णन मध स्लोका नाम से भी मिलती है। are के रूप में fवर वंशोत्परिक काव्य प्रकाशित है। केवर प्रकाश ग्रन्थ में को यी कहा गया है।
ger
बस्तु राजधानी के इनगहय काव्यों की परम्परावावैत और वचनका के रूप में २०वीं शताब्दी तक पाई जाती है। जिसमें प्रमुख ग्रन्थ १६ इादी का जैसलमेर से प्राप्त पुस्कलानुप्रास तथा १७वीं शताब्दी की अनूध संस्कृत लाइब्रेरी से प्राप्त कुददीन बाबा हरी बारवा १८वीं शताब्दी की नर सिंहदास गौड की दवावेत तथा सं० १७७२ की जिनहरि दवावे १८वीं शतानी अर्थात् ६०१७८८ का रक्नुवीर माणकृत राजरूपक (प्रकाशित) १९ शहाबुदी के प्रारम्भ में वाचक
•
fararta विरचित जिनकारि दवावेत तथा २०वीं बाबू का (२० १९२६ का) कविया गोपाल द्वारा विरचित शिखर वंशोत्पत्ति ऐतिहासिक गद्य काव्या जिसका दूसरा नाम यीढ़ी वार्तिक है इस प्रकार राजस्थानी की गदय काव्य परम्परा अवावधि सुरक्षित है। हिन्दी में भी २०वीं बताब्दी में रामकृष्ण दाद की erant न काव्य की उत्कृष्ट रचना कही वा सकती है ठी इसीलिए उक् विवेचन में मय काव्य की इन राजस्थानी शैलियों का परिचय दिया गया है। दिन में गब काव्य की सर्वप्रथम प्रस्तुत करना गहब काव्य के किल्प पाया, होता है।
में ही भाविका का हिन्दी जैन मन काव्य लिया गया है।
बादि काल के हिन्दी जैन कुष्ट रक्ना का यही अध्ययन वर्णनादि भी इष्टियों
T
1 पृथ्वी भरत ::
पारा में बम काव्य के स्वरूप को पुष्ट करने वाली रचनाओं में प्रथ्वीचन्द टना है। जब रचना का दूसरा नाम लेखक ने वाविलास भी दिया है