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इसी प्रकार राजस्थानी के गढ्य काव्य के रचना प्रकार क्चनिका के वेदों का अध्ययन किया जा सकता है।
इनरचनाओं के शिल्प के संस्कृत और राजस्थानी के गढ़य काव्यों का अन्तर स्पष्ट हो जाता है। राजस्थानी के इस गद्य काव्य में तक को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। वचनिका हिन्दी में विवेचनात्मक टीका को कहते हैं जब कि राजस्थानी में यह गया काव्य का स्वस्य काम्त प्रकार की रचना के लिए जाता है।राजस्थानी भाषा में गय काव्यात्मक शैली में किसी aarta और वचनका संकक रचनाएं क्या- (१) जिनलाम सूरि दवावेत
(२) नरसिंहदास दास गोडरी दवावैत (३) अचलदास बीवी की वचनिका (४) रतनमहेश दासोत्तरी बनिा आदि थोड़ी ही मिलती है। राजस्थानी
अत देह के दिग्गज विध्याचल के बुजाब, रंगरंग चित्रे मुंडा ठंडके बनाय
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मूल की वसूल वीर बंटू के उनके बादलों की जनमन मेरे मेरे मोरो की कीम काल कदयू के लेगर मारी क्रमक की इंस, जवाहर के जेवर दीपमाला की का।
१- वचनिका के दो प्रकार है
दीव मेद बचन कारा, एक पद बंध दूझी गद गंध, state एक तो बारखा पूरी बारता में मोहरा मद गंध वचन का है एक यो माढ मात्रा दो पद मावारी पद वै।
सूपद गंध
राजनी। दोन
गद
दूरी मदद बीस
टीकाकार श्री महद्वान कन्द्र सारे मे इसके विशेष विवरण में लिखा है कि दे for की ही वेद मालूम होती है। इतना सा मेद मालूम होता है कि कार विस्तृत होती है और हमें बोडेमा में जुड़ते चले जाते है।
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दिन सभा में बीताजी गाडी राड़ी बन पाई, इम यूँ बीवी ने बीता बाई ।।
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रेवर विवास बने बर भरपूर दाइ किमी पे उप विनय पंचवटी प्रीय रहता रीठ उठोन मार्ग अवान पान, बाहर भी दिन हरी सीव
दूसरे को ठीक कहा गया है:- रघुनाथ रूपक मंकुस तथा चना-वार्च १९५१ में श्री नाष्टा जी का लेव ।
इस टीवी बानी, सुरनरमाया ने लोहानी जिनकी परसाई, बीरा अमरारी कीधी
नवरी निका:सम्पादक डा० एल०पी० टेस्पीटोरी: प्रकाशकरात रविवाटिक सोसाइटी मेवायन प्रथालय में रचना की प्रकाडित