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सूचना मिलते ही पक विशाल सेना साथ में लेकर रत्नमंजरी को वरप करने की कामना से वहा पहुंचता है। उसका प्रेम रत्नमंजरी को भी पिघला देता है। पृथ्वीन्द्र की कीति, रक्ति से परिचय होकर वह मी उसे प्राप्त करना चाहती है परन्तु बीच में अनेक व्यवधान उठ खड़े होते है। बेताल अपनी मावा कैला देवा है और रत्नमंजरी को गाकर गाता है। पर बीचन्द्र के प्रति उसका प्रेम इन होता है।शर पृथ्वीचन्द्र पी देवी की आराधना करता है और देवी प्रसन्न होकर उसे रत्नमंजरी को प्राप्त कराने में पूरी सहायता करती है में दोनों को एक दूसरे की प्राप्ति होकर पाणिग्रहण का आनन्द प्राप्त होता है।
क्या इसनी ही है परन्तु कवि ने इस छोटी सी प्रणब गाथा को विविध वनों से संबोवा है। वर्णन के इस स्थूल म में उलक कर लेखक ने कहीं कहीं रचना काई नौरव शिथिल या कर दिया है।कही कहीं नाम परिमनन में शकर कृति की क्या वस्तु गुस्ताने घी लगती है और क्या का सारा डावा की लड़ाने लगया है। कहींकहीं लेखक के वर्णन बड़े ही माधुक्तापूर्ण और परम बन पड़े है।
पूरी रपमा को कवि ने पंच उन्लाओं में विभक्त किया है और प्रत्येक ग्लास विविध मांगों द्वारा बारा गया है। अब वन अनुप्रामा । रचना का शुभ समान होने, मायालक होने का किया मादायक होने में है।सी की मारमा पर मरमन का जन्मेष करती है। वर्षों
की मालवा सकी काव्यात्मक्खा में पूर्व सा प्राप्त की है। उपमानों और उत्प्रेक्षाओं की ऐसी बर माला या गिलमा म वि था के माध्यम से वर्णन परमार दिखाया।
लामा भारती के बाशिकलास की माना इवारा किया मालामार : कविधा मन: उसके मबार पर कवि
मामकारबानिल्चम पारी-प्राभाकाoy.९॥