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यंत्रों और मुद्रक प्रेस ने गदूम के विकास में अभूतपूर्व योग दिया। वस्तुतः यह कहा जासकता है कि षय का विकास में जितना योग लोक भाषाओं ने दिया उतना गम के विकास में नहीं दिया और यही कारण है कि प्रादेशिक भाषाओं में पढ्य की तुलना में गय नहीं के बराबर की मिलता है। हिन्दी भाषा में भी मैथिली के गहय ग्रन्थ से प्राचीन कोई गद्य रचना अभी तक नहीं उपलब्ध होती ही राजस्थानी और जूमी गुजराती में इस प्रकार का गह्र्व साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हुआ है अतः हिन्दी के गद्य साहित्य की श्रीवृद्धि इन्हीं प्रवेशों का मय साहित्य करता है। अज, अवधी, भोजपुरी, कन्नौजी आदि प्रादेशिक भाषाओं में भी म अवश्य ही लिखा गया होगा। ऐसा अनुमान किया जा सकता है परन्तु संभवतः वह आक्रमण कारियों द्वारा, सुरक्षा ठीक प्रकारसे होने की व्यवस्था के आबके कारण तथा प्राकृतिक व्यापातों द्वारा नष्ट हो गया होगा । अद्यावधि इन प्रदेशों से मन की वर्णरत्नाकर की भांति कोई भी प्रति नहीं मिली है परन् वर्ष रत्नाकर के गदूम की सम्पन्नता के आधार पर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि अन्य प्रादेशिक मात्राओं में मय की ऐसी सम्पन्न कृतियां अवश्य हुई होंगी जो आज अनुपलब्ध है। कई विभाषाओं में तो सम्यकृशोध का अभाव की इसका कारण हुवा है। जो भी हो, यह स्पष्ट है कि आदिकाल की महब साहित्य परम्परा पर प्राचीन है।मय और मकान में भी कम के स होने के पश्चात् डी मदन काव्य का मन सम्भव है यदय काव्य रस पेवल होता है। यह राय का पोपेड विष्टि उदय पर दों से रहित
मद्य
रचना तम काव्य के नाम से अमित है साधारण मम को इसमें सम्मिलित नहीं होते की जिससे पढ़ने और सुनने में यह का आद या र विहीन का है।
किमया
अक्षः मम काव्य में का भानन्द अनुभूत कराने की शक्ति होती # उसमें योधनायक होता है और सरसता एक रस विद्यमान रहती है।
* देवर राजस्थानी गहन काव्य परम्बराः शीर्षक श्री आरबन्द नाष्टा काले।