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अतः वहीं इसी गद्य काव्य की परम्परा के इतिहास पर संक्षेप में विचार किया जा रहा है।
जिस तरह मदय का विकास के साथ ही साथ हुआ प्रतीत होता है ठीक वैसे ही गम काव्य का विकास मी पवृक्ष काव्य के साथ ही साथ हुआ रहा होगा । काव्य की प्राचीनता भी मन की प्राचीनता की भांति ही पुरान कहा नगी विदो कहीं कहीं जो वर वाणी मिलती है वाक्य मैंने व्यात्मक और रख पेशल पदक की अनुभूति कराने वाले मिलते है। वेदों के पश्चातु महाभारत में पी राम काव्य को विकास मिला ऐसा प्रतीत होता है। महाभारत के पश्चात् जैन आगमों में मदय काव्य के व्यवस्थित उदाहरण मिलने लगते है। इसके पश्चातु नाटकों को लिया जा सकता है। नाटकों के मदय ने भी काव्य के उत्कर्ष में पूरी बाकी है मा कालिदास भवभूति आदि के नाटकों के सुम्दरों में इन्दर गहन काव्य के दर्शन होते हैं। संस्कृत ग्रथों में कड़ी का दशकुमार परिय जो ईसा की ही बताब्दी के मासपास में रचा गया है, गड्य काव्य की उत्कृष्ट रचना है। सुबंधु की वासवदत्ता को भी नहीं भुलाया जासकता । इस रचना का प्रत्येक शब्द ही सत्य तथा लिब का बेजोड़ निर्वाह है। वासवदत्ता के पश्चाङ्ग गम काव्य के महान पिता बानभट्ट है जिनके प्रसिद प्रन्थ बाबरी मोर है।
कादम्बरी सुन्दर सरस और उत्कृष्ट रचना है जिसमें बाम का सारा कवि उपर जाया है। लम्बे लम्बे काकारिक वाक्यों में बीई मधुर वर्धन की सूचना कवि मे मम काव्य अपेताओं ने प्रेरणा की थी। और बाद के प्रन्थ की ही मोतिर म काव्यात्मक रचना धनपाल की विलक्जरी नही जायगी। चकचैव कादबरी की ही काव्य का उत्कृष्ट ग्रन्थ है और विश्व के किसी भी
कीमा में रही या सकने वाली अनूठी कृति है। श्री आर बनेकी इस मकूब काव्य की अनूठी रचना के विषय