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अन्तर्गत प्रबन्ध और मुक्तक होते है और प्रबन्ध के महाकाव्य, मेड काव्य त्या बंधू काव्य भेद किए जा सक्ते है तथा पुक्त के स्तोत्रस्तवन एवं सुभाषित होते है पढ़य काव्य की ही माहि गड्य काव्य पीकाव्य प्रधान होता है पर उसको छन्द के बंधन में बाधना अनिवार्य नहीं है। द को छोड़कर वे सब काव्य के गुण उसमें दो जासकते हैं। बापन ने गैहय के वृस्तगन्धि, उत्कलिका प्रायः और पूर्णक तीन प्रकार तथा साहित्य दर्पणकार विश्वनाथ में अक्तक गङ्ग्य और कहकर चार मेव किय है। जिममें पाद मा यद के अर्थ जिस सन्द में मिलते है उसे वृतगन्धि, लम्बे लम्बे समाज प्रधान गद्य को उत्कटिका प्राया और होटे छोटे समस्त पद को पूर्णक और समस्त पदों के अभाव बाले गढ्य को पुस्तक नाम दिए गए हैं।
गड्य काव्य के क्या और आख्यायिका दो भेद किए गए है जैसे कादम्बरी को कथा और इर्ष बरित को भास्थायिका के नाम से अभिहित किया गया है बम्बू काय मित्र काव्य का एक भेद है। बम्पू काव्य के साथ साथ मित्र काय के विन्ध और करम्भ ये दो भेद और भी होते हैं। वर्णनात्मक मित्रकाव्य को चम्पू काव्य, गद्य पद्यात्मक राज्स्तुति को विन्द और अनेक भाषा प्रधान मिश बाध को करम्यक कहते है।
प्रश्न है कि पहय और गद्दय में से पद्म को प्रधानता क्यों मिहीकारणों की व्यवस्था करते हुए कहा जा सा है कि एक तो पाय याद करने या कारण करने में रहता होती पहन लोकप्रिय बना है अब उसका मन साधारण में महत्व व्या प्रचार बड़वा है इसकी उपयोगिता अधिक रहती होगी और सम्भवतः यही कारण है कि हमारे प्राचीन बध्यतावों और विद्वानों इवारा जिन जिन यों का उदाहरणार्थ- कोष,ममित, वैषक ग्यानिक मामि-अमन हमारे
नवी ीि पहल प्रधान तथा काम प्रधान होने से मधुर मोका पानी पाते हैं। मही कारण है किमारा अपि angner पिक है। धीरे धीरे गाय का भी विकास मा प्रकाशन
-शील
पना: मार्च १९५७
२.३।