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मी रात्रि भोजनादिकन निवेवरूप र आचार के विवाने करी के समान परीक्षा हुई। कुलिई करी, जाचारिई करी जे सरीका कई (२) प्रसिदु च देशाचार- जे उत्तम मनुष्य मीहि प्रसिद्ध देवन माचार
starrer for atक व्यवहार जेन समाचरई ते धर्म योग्य नहीं, ज arees से धर्म योग्य ।
(३) राजादिः राजा मैमीश्वर पुरोहित बैठी प्रमुख मोटान अववाद विशेष न बोलई से बोलती इहलोक इ लक्ष्मीनी दानि जीवितव्य विनाशादिक
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दोष उपजई तेह भी कहिन दोषन बोलई से धर्म योग्य ।
इस प्रकार हिन्दी मय साहित्य के अनेक उदाहरण इन आदिकालीन कृतियों दुवारा प्रस्तुत किए जा सकते है। यद्यपि इनमें से अधिक कथाएं अपने पूर्ववर्ती विद्वानों के संस्कृत और प्राकृत ग्रन्थों सेअनूदित है परन्तु तो भी इनके उदाहरणों से तत्कालीन माया के गद्य क्रम और विकास का इतिहास स्पष्ट हो जाता है।
(३) धर्म सम्बन्धी गम साहित्य
धार्मिक रचनाओं के रूप में
धर्म हिन्दी जैन रक्ताओं के मूल में दवा का कर सर्वविदयमान है। हित्य सम्पन्न है afare प में धार्मिक वस्तु प्रधान मय रचनाएं उपलब्ध होती है। जैन को ये इतर रचित कालीन चारली व साहित्य में भी इसी प्रकार के उत बाकी पर लिख रहे थे और कुछ जैन बावली पर बारमी मग ईली में उपलदार बीवी-री वचनका सबसे विका रमा का वजादी का उत्तराध है । प्रथ्वी चन्द्र
होते है।
**- प्राचीन बरामद ० १८०११९।