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________________ चरित्र (जैन रचना) पीसी शैली की है। क्या साहित्य निबन्ध साहित्य, टीका, माभ्य और अनुवाद के रूप में अम्गदय काठ का बितना गद्य साहित्य पिलता है उसमें प्रमुखता बालावबोध शैली की है। अभ्युदय काल में जितने प्रमुख गद्य लेखक हुए उनमें से लगभग सभी ने इसी भाषा टीकात्मक बालबोध बैली में अपनी रचनाएं की वाचार्य प्रमूरि, सीमान्दारि, मुनिसुंदरसूरि, रलवर, 'जिनसुन्दर, मदर (रबरमन्छ) शिवसुन्धर जिनसूउ (वभागछ) साधुरत्न, राजवन्लम (धर्मधीय गच्छ) तथा डेमसमामि आदि अनेक प्रमुख बिड्वान है जिन्होंने विविध स्पों में गम के क्षेत्रका सम्पन्न किया है।आदिकालीन हिन्दी बैन बाहुभय के इस गद्य साहित्य को सम्पन्न करने वाले तत्कालीन जैन लेखकों प्रमुख रूम से ५ महारथी उल्लेखनीय है :-आचार्य समप्रभमूरि, १- श्री सोम गुन्दरमपि, ३- श्रीमसन्दर, ४-श्री पाश्वत ५- मामि क्यासुन्दरसूरि। इन पांचोंमहारथियों के कारण विकासकाल को आदिकालीन गड्य साहित्य का स्वर्णकाल कहा जा सकता है। पहावश्यक बालवबोध: सम्बका की इस रमा कमी भावार्य बनभरि । कृति भी अप्रकाशित केली माटाची के ग्रह से लेक में इस पौड़ कृति तिमिप्रति उपलबध हुई।' प्रति गहब को देखकर बाबा जी की मिवता का परिचय लिया है। जिस पर यापि धार्मिक है पर हिन्दी साहित्य की प्राचीन मइम रबमानों में बम्ब काल मा स्वर्णकार की इस मावश्यक बाताबोध कृषि को भयो प्रीद कति सा वा मा " १-सामिारमार- प्राचीनतमझ रखना । मावालाना लेखक का हिन्दी साहित्य की परि (हस्तलिखित प्रशि-अपय जैन
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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