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१४११ यथा प्रथमव्रत ऊपर- चन्द्रसूर राजा पुत्र कथा प्रथम अहिंसा व्रत पर लिखी
एक कथा के गम का उदाहरण देखिए:
(+) जय एक जाति पुरु।
नामि राज सूर चंद्र नामई करी बि व्येष्ठा महाणि करी राजेन्द्र ज्येष्ठ युवराजा कीघा । वृटिस करी । ह afra मात्रा की गति नहीं। के अपमान व वैद्रि देवली
(२) वासंती नामि नगरी कीर्ति पालु मामि राजा, मी
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मानि
पुत्र पुत्र ही कडा वति
सिंह नापि श्रेष्ठ
परम श्रावकु
चिनि सभा मा कीर्ति पाहू राजा सिंह
जिम पक्ति तु areas | भनेर ब्रेकिट मुख कमल अमर जिम जीयछ त वत्तई । तेल प्रस्तावि प्रतीकार आजी राजेन्द्ररहई वीनवइ- महाराज तुम्हरहई देखणहरु एक पुरुष दिव्याकार राजा तिमी मेल्हिो
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१-० ० ० ०
+ वहीं पर ।
सम्यकत्व तथा धावकों के बाचार पर भी अनेक कथार्थ उपलब्ध होती जिनकी भाषा अत्यन्त सरल व प्रवाहपूर्ण हैं। इन कथाओं को प्रारम्भ करने की एक ही है परन्तु फिर भी प्रत्येक कथा अपने में पूर्ण तथा प्रभावशालिनी
छोटे मैने तथा भावपूर्ण है जिनमें एक सौकर्म सर्वत्र विद्यमान है बैठी
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में कहीं भी विचिकता नहीं है।पकाचा व्रत ऊपर लिही मंत्रीस्वर क्या का एक उद्धरण देखिए:
प्रभात बनाइ देही करोड बनि पोर बेल्लिपो पारी की दिवस कृत्य विधिक करिया लान । मानुषाविह नई परिवली बनाई निधन हुयी । नेइ दिनि स्वाविया चोक देदिना धरती व वस्तु चोरी व तेह वस्तु मा ए क्यूकि मुक्ताफलनउ डाक है करी। विनिहिं जि नदि किना श्रेष्ठि इवावि
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री करी कार रहई आठ चोर धरण