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में जैन कथा साहित्य का बसाधारण हाथ है। सहस्त्रों जैन बातों और स्थाओं का साहित्य अभी तक जैन मंडारों में अप्रकाशित पड़ी है
वही इन क्याओं के विषयों का प्रश्न है। क्या अनेक प्रकार की मिल जाती है .. लोक माल्यानक, ३. धार्षिक - गारिक, ४- ऐतिहासिक ५. उपदेशमूलक - चरित प्रधान, नीविजन्य, ८-मनोवैज्ञानिक सामाजिक तथा विविध विषयक
वस्तुतः इन सभी स्थानों में विस्य की मुख्य वेदना धर्म प्रचार या वरित निनाम और ज्ञान प्राप्ति ही है।क्यात्मक पद्धति से इन रचनाकारों में श्रोताओं के मनोविज्ञान का स्पर्शक्यिा है।इन शाओं द्वारा बर्मित मनोविज्ञान भी उल्लेखनीय है। जैनदर्शन, मागार कर्म, तथा भक्ति व जैन धर्म के विभिन्न अंगों असे कठिन व दुरूह विषयों पर प्रकार डालने और सनको सरलकन पाषा में समझाने के लिए जैन लेखकों ने एक स्थात्मक शैली अपनाई है और दूसरे वर्णन में मदद को की ठीक समझा है। अत:ये धाएं अत्यन्त सरस, मधुर, स्वाभाविक, सरल, भावप्रधान, उपदेश, नीति तया चारित्रिका गरिमा औरदानिक सिद्घान्नों औरउपासन पद्धतियों को स्पष्ट करती है। इन स्थाओं में महत्वपूर्ण कथाएं प्रमुख जैन विद्वान् पल प्रभूपरि 1 से ही उपाय होती है। इनमें प्रमुख समसे सम्यकरव, वाखत, सोलह कारण, पायक अविचार उपवेबमूलक, स्वधर्म या गोम शास्त्र सम्बन्धी नमस्कार बाला व बोध, ज्या प्रकी वादि अनेक विषयों पर लिखी क्या उपलब्ध होती है। इन महब क्याभों के रविवानों में प्रमुख रमाकार :श्री प्रभरि ( ), श्री बोमन्बरमूरि (0 ४५-. श्री माथिमदरी १८ श्री मांगमि (faote tha) मावि है।
मिनिमविषयों या बारा जन भाषा में तिवी गई इस मन्य मानों नारों पर विवी मई भनेक कहानियां है। विषयानुसार इन बयानों के सागरण की भाषा तथा इनके प्रवाह का अध्यायन कसे के लिनी दिलवा रो to समय ना हो सम्बन्धी-रचयिता श्री आचार्य नन प्रसूरि .