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दूसरी रचना ौक्तिक है। इस रचना को पी० दलाल ने ५वीं शताब्दी की निश्चित की है। इसके रचयिता श्री सोमप्रमसूरि सोमप्रम विद्वान जैनाचार्य तथा ये तपागचहीय थे। रचना छोटी सी है तथा व्याकरण पर लिखी गई है।
व्यापम ग्रन्थों में तृतीय त्या अन्तिम ग्रन्थ उक्ति संग्रह है। इसके रचयिता तिलक है तथा तिलक के विषय में तत्कालीन सहायक ग्रन्थों में भी विशेष उपलब्ध नहीं होता रक्त दोनों रचनाओं के उदाहरण कम: इस प्रकार है:(१) करावई लिखावह गधा लभाउ ३, लैपयति , संपादयति, उतारउ ।
उत्तारयति, हलकीगड, तीग कीजड़ यथा देवदात्त मा, इ, अइ, पुइ अइ य सेहि आवश्यक पठिउ, 3 सवेहि राजि जापीइ क्या करता
लेन्ट दंडळ इत्यादि स्था गरि अशु जागिउ बेतु व्याकरण पत। (0 वदत्ति पयि पापिर पाबइ, उपाध्याय मइ पढाबा, देवदा पहीबा
--- देवदत्त कर --- पापियउ साप मारइ। ध्यारण मूलक इन तीनों रचनाओं से संस्कृत व्यानरक सरलतापूर्वक समाई जा सकती है। रचयिवानों ने इसी लिए हमें राजस्थानी भाषा मा सरल हिन्दी
Tला हैधास्थात्मक पति सरल है।वाक्य मोटे और किाय प्रतिपाल पूर्व मना है।
(२) या प्रधान महम साहित्य
महर साहित्य की हारी और प्रमुख शारा या प्रधान हिन्दी जैन या गावाचा मालक या एखी मिलती है जिनमें तत्कालीन मारे अन्दर बामिाओं की इन पतियों में मदद्यात्मक मा जिति यात्वा कामी मन में पर्याप्त समावेश
या मावि हो चुकी है। गड्य साहित्य ने उसळ
शिवानी बाहित्यपरिषद की भी रिपोर्ट पृ. 14-14 वारा
डी. वसाळा