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सेवक जैन कवियों और उनके अनुयाभियों ने उसे सर्व सुलभ, जनमाका में बोधगम्य क्या सरल अनुवादों, टीकाओं, तथा विस्तृत टिप्पडियों के रूप में प्रस्तुत किया। साथ ही उन्होंने एक महत्वपूर्ण कार्य वह की किया कि शास्त्रीयता के बंधनों में कसे प्रथों के आधार पर स्वयं भी मौलिक ग्रन्थ रचे। अधिकतर में अनुवाद और टीकाएं प्रमुखतः दो रूपों में मिलती है:
१- टन्ना एवं
२- बालवबोध
टना:: यह भी टीकात्मक पद्धति है। इस रूप में जैन टीकाएं इस समय की बहुत ही कम प्राप्त है इस प्रकार की बैठी में बिस्तार नहीं होता। इस बैली का विल्य बहुत ही संधिप्त होता है। बालबोध से इसका आकार अत्यन्त सूक्ष्म होता है। इस शैली में पहले मूल शब्द लिखा रहता है, और फिर उसका अर्थ दाएं बायें था उसके या तो नीचे या ऊपर अथवा उसके बार में
क्रोड में, अथवा मूल शब्द का ही दे दिया जाता है। टब्बा
संज्ञक रचनाएं उक्त काल में लगभग नहीं ही मिलती
है। कालान्तर में इस संज्ञा की कई रचनाएं उपलब्ध होती हैं।
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बालवबोधः अविकालीन हिन्दी जैन साहित्य के गदय के विकासकाल या अभ्युदय काल में बालावबोधक संज्ञक बैली डी प्रमुखतया उपलब्ध होती है। मालावबोध से arrer वर सहज बोधगम्य अनुवाद से है। यह शैली जैन कवियों ने पति व्यक्तियो के लिए नहीं अपनाकर बहुत ही कम पढ़े लिखे असावर अव अधातु धावकों के भ्रमणाने के लिए बाल ग्रन्थ की व्याख्या इस टीमें बहुत ही संसार के साथ होती -इस बैली की मुख्य संवेदना है ताकि कठिन से कठिन मैचान्तिक ज्ञान भी
सवय हो सके व कम वाधारण उससे काम उहा सके जव: मूलसूत्रों व Tea को स्पष्ट करने में कथा का प्रयोग कियागया है। वस्तुत: इस प्रकार की की को हम कथा प्रधान रैली भी कह सकते है। कथानों में भी अनेक प्रकार की क्या है
१- मौलिक कथा
१- परम्पराम कथाएं
३- लोक कथाएं