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इसी प्रकार मालवी का सवाया देखिए:१. जब मालवा देश की पावली बोलण लामी, तब अवा देव की परि मागी।
विका रे मोरी बहिनी। पि कृषि मौरा देख काहा वसावति। मोरा देश की बात म बाहिणिणि देशि मंडवगढ़ मेरा गर, जयविदिवराज। मसूर का थान। अवर देश का का भानु काटा सूचक इटगा। कोरा
साडा अरु मणा। हाली अरु बानी। पेटिली अ नाचणी। विक्रे मोरी बहिणी। बलि बलि का बिल्लाहा तोरा बोल्या सवाइया। मालवा देश की परिनीकी सिरि की दीकी सेत चीर का साहाजिया आदिनाथ युगराज। दिहे बाइणि परिपूजियइ
उक्त उद्धरण मालवी का है जो प्राचीव-राजस्थानी की एक बोली है। वह पी राजमानी से पर्याप्त माश्य रखती है। पुरानी हिन्दी की और इस बोली के रूप में बढ़ते दिखाई देते हैं। खेद है मालमी में लिखे हुए आदिकालीन जैन का साहित्य की कोई रचना उपलब्ध नहीं हुईनीतो बहुत सम्भव था कि आदिकालीन गद्य और पग के उसव में मालवी से भी पर्याप्त सहायता निक
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अन पूर्वी वाद देविष:
पूर्वी माविका का माल्या सुपी रे भाया। कृमि नामिक धीरे बिहुरे बोरी बहिनी पनि पुनि मोर देख किन बरति माह गोरे देस कोबार म भानगी देख से मानुस - इक्क धीरे धीरे विवेकिय। परम बाप के मोडन बाट माल का बान के पराम, क्या से बामा या हुमा याममा मा बडा तुम्ब के मानुस बरि गोटे, भारि मोटेविपि कोट। म के भानुमरि मान्छे परि नानो विवि महा । बइस दीसा जइस पूनम का चौड़