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________________ ८७१ विचार अभिव्यक्त करने का प्राकृतिक अधिकार होता है। अब आदिकालीन इन उपलब्ध न गइब कृतियों कृतियों में इन जैन साधकों और कवियों की बीव्रतम अनुभूतियों और अभिव्यक्ति का पूर्णतया ज्ञान प्राप्त होता है। जैन गइम परम्परा आदिकालीन हिन्दी साहित्य की जैन गइव परम्परा पर्याप्त प्राचीन है। गद्य की प्राचीनता का परिचय देने वाली वीं शताब्दी की एक जैन रचना जिनप्रभसूति की प्राप्त हुई है। जिसमें उन्होंने देशी भाषाओं में चार नायिकानों का संवाद दिया है। इनमें से तीन नायिका हिन्दी प्रदेश की है उसके सेवायों के उद्धरण मीचे दिए गा रहे है पहले गुजरी नायिका का संवाद देखिए:1- प्रथमा बानवा जरी नायिका पण: अहे बाई एह तुम्हारा देस कवण लेखा माहि गणियह किस देश मुजरा मापलि माहरी मार। एउजु लाघउ माणुस ओ जमार जो आदि मात्रि काइ हारउ, ए जि सम्यकत्व मूल वारह ब्रत पालियहि किसा किसा बारह ब्रत |---- १ दशा बारह व्रत पालियाहिं। आचालना टालिया। पूजियश्री आदिनाथ देवता। पापनासडि बढुंजव सेवता। अनी कि पण मणियह भारी माह एव पुरावाड़ी कार अनाइ अमेरइ देश किसी परि मन गाह। लिपि दैषि माला पॉगर सिविलक्षणा बोकार, कला पीकार । त्वमा समाचार बालबालभर ५ माजी ६ परायी , पटासी पाणी भूमलिया १० करडि " मलरी मम व पाया। जरी मी गाय का पारिया बाया बाई किसी ग्याने मुंह से नो अब्द गुजराची के मान के मान राजस्थानी कहा जा सकता है अथवा परती
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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