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आदिकालीन हिन्दीजैन साहित्य(४) गद्य परंपरा 000
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विषय प्रवेश
गड्य और बड्य हिन्दी साहित्य की दो प्रसिद्ध विधा है जिनमें गय का उभय कब हुआ? यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है। संस्कृत और प्राकृत पाकानों के परिशीलन से यह विश्वास तो होता है कि गद्य हकना बहुत प्राचीन काल में होने लगी थी पर इसका निश्चित सूत्र क्या है यह बहुत निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सका। प्रायः ऐसा सर्व विदित है कि पदय ही गय के पूर्व बना था परन्तु संस्कृत और प्राकृत के अनेक प्रनय गहबों के जन्मदाता को जाते है, और इसीलि पद्य का उदभव गदय से पूर्व नहीं माना जा सकता। हिन्दी साहित्य के प्राचीनतम गद्य साहित्य को प्राप्त करने के लिए सभी की दृष्टि आदिकाल की ओर उठ जाती है। आदिकाल में उपलब्ध रचनाओं में हिन्दी साहित्य की अनेक प्राचीनतम गद्य रचनाएं प्राप्त हुई है। प्राचीनतम गा के स्वरूपों को सुरक्षित रखने वाली रनाओं को जन्म देने का समाविका को ही सीमिधा, नाथ जैन आदि अनेक स्वोत्र में उपलब्ध होते है।
यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कि हिन्दी साहित्य की प्राचीनतम यड्य और पद्य की अनेक रचनाओं को कम देने का और सुरक्षित रखने का श्रेय इसन बारम्भ को इस बात्पर्य बापी महीन्य प्रकार की मदद कृडिया मिल ही नहीं मिली। पर वे इस जैन बाइक्स से मस्या में बहुत कम मिलनी है मा सष्टि जैन साहित्य की इन कमियों का अध्ययन अत्याबाबक हो पानावाहित्य विशाल साहित्य है जो अनेक बाबाओं
लिया गया है।मनी सापकों में अपने विचारों, अपनी मनोवृत्तियों गौर कोषारकन्टिकोष का प्रचार कस करने के लिए उत्कृष्ट साहित्यिक पारन भाषारम की गोलियों में लिखा है मानव मात्र को अपने