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________________ ८.३ स्तवन प्रस्तुत करने के बोल है।उल्लास के इन बोलों द्वारा कवि अपने हृदय की श्रद्धा और भक्ति का प्रकाशन करता है। इन बोलिका संज्ञक रचनाओं में अधिकतर पूर्व रचनाओं की पाति साप्रदायिक या धर्म प्रशस्तियों तथा स्तवन है। इन रचनाओं मैं अधिक सं० १४३७ की प्रति से उपलब्ध है। प्रति पय जैन ग्रन्थालय में सुरक्षित है। भाषा में अपभ्रंश बकों का बाहुल्य है। बोलिका और बोली दोनों एक ही प्रकार की रचनाओं के लिए प्रयुक्त हुआ है। कुछ रचनाओं का परिचय निम्नांकित है: श्री बासु पूज्य बोली रचना अप्रकाशित है। इसका पाठ ० १४०० की हस्त लिखि प्रति (अभय जैन ग्रन्थालय से मान्य है।ना धार्मिक तथा देव अर्थ और उपाला आदि के लिए लिटीगई है। कृति मे है। इसमें न्यात्मक बदों और वादों का वर्णन है। बाइ पूज्य तीर्थ को नमन किया गया है। आराध्य की पूजा में साधक की पूजा विधि व उल्लासमय मोल इष्टव्य है- लेखक है: करि उ वाचा सुंदरि मणि नि वा महिवि अगक म्यूक न करी ग्राफ या यूज स्वावहि पावन पनि अंगि वि ताप रावने विवि का निव वादों की बहार निका नामानि पड्या या दोन ताकारी रिहानी डाल ता मदर पर कोरी या भाव या परिमार रिमायहि गायन सोहि म इस मौलिक रचनाओं में भी गीत तथा गाइयों की प्रधानता है तथा करि दिनमा पाठ बीम मे महरंग
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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