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ग्राम अर्थ अनंत गुण, सुबसा देखि मल्हार
मसायर वोत्थिं सम मम जय जिनवार"
इस प्रकार कवि ने जिनवंदन प्रशस्ति में ही पूरा स्वयम लिया है। रचनाकाव्य की
दृष्टि से साधारण है।
स्वंममेव परवर्वनाथ स्तवन
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(प्रथम)
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श्वर स्थित पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रशस्ति रूप में प्रस्तुत स्तवन लिखा गया है। कवि का काव्य कौशल और माया की सरलता इष्ट हैं। रचनाकार जयवाग रहे । स्तवन का रचनाकाल १५वीं वाबुदी का उत्तराय है। उदाहरण देखिए:
*निय महारस वीरखंड पय वक्कर पोलिय
हवा ह तह जाणि वापि म मुद्रिदय बोलिय
जं निसर्ग तवि भविग लोय तिस मुक्थन पागइ श्रीविव गवि पूरे ना जइ धन्य वक्यागड़ मपि सामल लिय काय, के गगवड वर बहु करियति कर ताछि, जिम सोबन सिरि सोवन्न राि
पान
चोकमय दो पद चोर मय संकरा, रोम भव सोम मय योग भय वरा
निमय देवरी, वामन बाप मपि पास अवेस
*
रमा भावात्मक का रस है। रचना की प्रति जैन प्रथालय सुरक्षित है।