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महासि राहुल सांकृत्यायन ने लिया है कि "कन्नौज नगरी देसी
स्वयंवर कन्या थी जिसे राकूट प्रतिहार और पाल टीनों व्याहता
चाहते थे। लेकिन स्वयंवर कन्या सौत बन कर नहीं रहना चाहती थी । अब तीनों उम्मीदवारों को फैसला करना था कि कौन अपना देश छोड़ कान्यकुज जाने को तैयार है। प्रतिकार नागभट्ट ने फैसला किया वह कन्नौज का स्वामी जन गया बाकी दोनों मुंह ताकते रह गए। नागभट्ट मंदीर (जोधपुर) तथा उज्जैन का शासक था । उज्जैन और कन्नौज के दो केन्द्र हाथ आ जाने प्रतिहारों की शक्ति दिवगुण हो गई। मिहिर भोज प्रतिहारों में प्रसिध वासक (सन् ८३६-८५) हुए है। मिहिर भोज का आतंक सारे मध्य के पर था। मिहिर भोज ने पाल और राष्ट्रकूटों से अनेक युद्ध किए। अरबी लोग उनसे घबराते थे। प्रतिहार नागभट्ट उनसे करीब करीब महमुद के हमले तक कन्नौज उत्तरीभारत और हारे भारत के लिए जबरदस्त ढाल बना रहा। "
बन गए।
(4)
राष्ट
मिहिर भोज के बाद महेन्द्र पाल प्रथम (सन् ८८४-९१०) ने साहित्य सेवा में बड़ा योग दिया। प्रसिद्ध महाकवि तथा लेखक सस्वर उन्हीं के दरबार में थे। महाकवि राजसेवर में काव्यमीमांसा, कर्पूरमंजरी, बाल भारत, बाल रामायण आदि ग्रन्थों की रचना की है। ब्यू९४८ में प्रतिहारों अंतिम राजा देवाल हुए हैं, फिर तो प्रतिहारों में कोई यह नहीं रहा और उत्तरी भारत भावा मध्य देव ने स्वयों में बट गए तथा अनेक नये राजवंश भी
"
इस मंत्र की करता पुलकेशी के वाक्य यंत्र की समाप्ति करने पर सम् ७५० ई० में हुई। २०० वर्षों तक राम्दस्ट राजा बड़े शक्तिशाली बरे रहे। श्री राहुल
स्वावन।
देश ० १५२, डा० धीरेन्द्र वर्गी |
१- हन्दी काव्य वारा: १०
१० हिन्दी काव्यधारा: राहुल