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________________ ८२९ किया वह घाव आज भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है जिसको कवि ने स्पष्ट किया है:- पुणवि कुहाड़ा हत्थि लेवि जिन वरतन ताि चन्थवि कुहाडेहिं हो सिर बाहिर १ अजवि दीsि अंगि पाव सो हिय तसुधीरह चलन जयतु सरि-नयरि घम्म सुवीरह आक्रमणकवी ने कोरिंट, श्रीमाल, धार, नरान, अ डिलवाइपाटन विजयकोट, पालीताणा, कद्रावती, सोल और देलवाड़ा आदि मन्दिरों की मूर्तियों की प्रतिमाओं को भी ध्वस्त किया, अपार धन लूटा पर सत्यपुर या साबो के महावीर स्वामी की प्रतिमा का कुछ भी नहीं बिगाड़ सका।साथ ही सिद्धार्थ का वमकार arast की मोति नृत्य तथा उल्लासादि उत्सवों का उत्कृष्ट वर्णन कियागया है तथा कवि की इस संक्रातिकालीन रचना में भी शैली की उत्कृष्टवा परिलक्षित होती है। धनपाल अपनी तिलक-मंजरी के कारण बाग के समान ही प्रतिभाशाली कवि थे। संक्षेप में रचना के इस छन्दों का सही बार है। रचना साधारण है परन्तु संक्रातिकाल में अयमेव और पुरानी हिन्दी विभाजन रेखा-स्थल पर स्थित है अतः महत्वपूर्ण है। कृति का ऐतिहासिक महत्व: जहां तक इस रचना के ऐतिहासिक महत्व का प्रश्न है इसमें ऐतिहासिक कवि मे सत्यपुर की ऐतिहासिकता स्थot पात्रों तथा घटनाओं का उल्लेख है। को स्पष्ट किया है: विमानमा सो विनिमय द मान बिरिरि वीर विद १ श्री देवपाटन, द्रावकी, सोरठ देवाड़ा और मनुष्यों मनको बाबा सोमनाथ के मन्दिरों को मन किया पर सत्यपुर - त्रीय महावीर उत्साहः जैन सा०सं०० १४२ पद ७। * वही ० २४० पद ३३
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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