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राज्य के दक्षिण भाग में है।सत्यपुर साचोर का संस्कृत रूप है और अम्बर प्राक्त है जिसका अपर साचौर हो गया। वहीं स्थान महावीर का एक अत्यन्त प्रसिध प्राचीन तीर्थ है। सत्यपुर केलिए जम निन्तामणि मन्थ में जय वीर सच्चरिमंडल उस मिलता है तथा जिनप्रभरि के विविध तीर्थ कल्प में भी सत्यपुर को विकल्प बताने का उल्लेख मिलता है।अतः यह स्पष्ट है कि सत्यपुर जैनियों का एक विशिष्ट तीर्थ था।
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कृति की विषय वस्तु स्तुति परक या धार्मिक है तथा घटना ऐतिहासिक । स्तवन या उत्साह का विषय श्री सत्यपुरीय महावीर की प्रतिमा है मूर्ति का आक्रमणकारी के हाथ से बच जाना, मूर्ति के प्रभाव से आक्रमकता का पुन: लौट जाना आदि घटनाओं ने जो उल्काति और विध्वंस की प्रतीक है, प्रवा भक्तों को माने, नावने मूर्ति का यह वर्णन करने तथा किसी भी प्रकार अपनी effort भावनाओं के उद्वेग की उत्साहपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए बाध्य किया और धनपाल का यह स्तवन उसी प्रतिक्रिया का प्रतिफल है। धर्म की अधर्म पर विजय, feast का पराभव धमी के लिए प्रसन्नता का विषय था । अतः धनमाल की प्रेरणा के यही सब कारण विषय रहे होंगे। क्योंकि महावीर के दैवीय
साम के कारण व्याकुल होकर मजनीति चला गया और जैन से जब पूर्णतमा परितुष्ट इवा तो सब वीर भने पूजा, महिमा, गीत, नृत्य, बाकि बजा बजाकर इब्बों का दान आदि भावनाएं करने को। वस्तुतः इसी प्रभावना प्रसंग पर उप हो कवि धनमाल ने अपनी भक्ति और उल्लास में टूम कर वह उत्पाद गीत प्रस्तुत किया होगा, परित है।
१५की छोटी सी कृति में क्या नहीं है कि किस प्रकार पूर्तिजाने कुवाहों से महाबीर की सत्यपुर स्थित प्रतिमा पर भाषात
१- जैसाकि पृ० २९४ ।
विविध श्री जिननमारि ९०-९९
सत्यय महावीर उत्साह जैन-०-०-२४२ पद