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श्रावकों की दीनता और तीर्थों भावायों, महापुस्मो और तीर्थकों का गुण वर्णन तथा उनके उच्च आदों का स्तुति गान है। ये प्रशस्तियां अनेक सम में पाई जाती है। इनमें अनेक प्रकार में बैन दानिक सिद्धान्तों, कर्मों के भोगों व अन्य सिधान्द्रों पर प्रकाश डाला गगा है। इह लौकिक और पारलौकिक दोनों स्थितियों के चित्र कवियों ने इन स्तुतियों में सीचे है।
आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य के गीतों, स्तोत्रों और स्तनों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी विविधता है।इन रचनाओं का अकस्मों में वर्णन मिलता है। उन्में प्रमुख निम्नांकित है:
४. स्तवन
६- बोलिका -- स्तुति
बीनदी ९- चम्पाय १- नमस्कार
-प्रति मी और प्रशस्ति गान संतक ये रक्ताई उक्स विधि विधाल स्या उपलविय होती है इनका वर्गीकरण गीति, संगीत और वयं विषय के अन्वत दिया गया है।इन रयनामों को स्तवन या गीति कास्य की परम्परा । इस रेवा चित्र सारा स्पष्ट किया जा सकता है:
ऐतिहासिक धार्मिक गीतिस्तवन रत्वो गांव स्तोत्र स्तन गोलिका नतिजामती सकार
नमस्कार प्रशाल