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मातम |
विनय प्रधान रचनाओं में १
बादी के उत्तराध की एक सुन्दर सी
रचना
उपलब्ध होती है। विषय की दृष्टि से ययपि इसमें कोई नवीनता नहीं उपलव्ध होती परन्तु फिर भी गाया और वर्मन क्रम की इष्टि से रचना का पर्यान्त महत्व परिलक्षित होता है। प्रस्तुत रचना कालेवक अज्ञात मूल प्रति अवजैन ग्रन्थालय बीकानेर में सुरक्षित है।
प्रस्तुत रचना का विषय मृगावती और उसके पुत्र का दीवा प्रश्न करने के लिए परस्पर विचार विनिमय है। साथ ही पुत्र के द्वारा कवि ने पूर्वभव वर्णन, संचार का क्लेश, विभिन्न योनियों में परिभ्रमण तप की उच्चता आदि का महत्व स्वष्ट कराया है। पूरी रक्षा संवादों के रूप में किसी हुई है। कवि ने नरकों का वर्मन बड़ा ही जीव किया है।रचना का विषय माध्यमिक जीवन से सम्बन्ध रखता है। वर्णन बैली सरस, वजूद चयन सुन्दर और रचना अर्थ गाम्भीर्य से परिपूर्ण है। विषय सूबों में डूबी हुई मृगावती के पुत्र को पूर्वभव का स्मरण होता है और उसको दीक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा होती है।योपान्त रचना में निर्वेदात्मक areera का वर्णन होने से वान् र व्याय है।भाषा की सरलता, लुप्रासादिकता और कालिय दृष्टव्य है:
इमदाद ि
मावति परपि ररमन का बोडणी
का मुख्य गुण गातीर
विश्व विसिंह वालि काली
मंद मंदिरे मनि
विनो
दिनकर पारि
बबर निम निरादि ना क
(१-४)
१- प्रस्तुत रचना- कार्यदी-काव्य के साथ ही लिखी हुई मिली है। देखिए अभयजैन ग्रन्थालय बीकानेर |