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पूरी रचना हिंडोलाद में लिखी गई है।क्या अल न्व ४ है। कवि ने भाषा प्राचीन राजस्थानी उन बोली ही रक्खी है और वीं शताब्दी के पास पास की स्वना होने से उस पर अपद के शब्दों का प्रभावसर्वत्र परिलीज होता है। मान जैसे क्लिष्ट विषय को कवि ने बड़ी सरल शब्दावली, अनुप्रासात्मिक्ता बथा कोमल एवं प्रसादिक पदावली में समाया है। उपदेश का व्यक्तित्वस्थल स्थल पर स्पष्ट होता जाता है जो रचना का महत्वार भी अधिक बढ़ा देती है।
इन बातों के साथ साथ मत में कों के दोषों को दलने के लिए रचना को रोज पाठ करने का आदेश दिया है:
गढइ पढाबह अणचरह पर सिवारि जाई
कम्माण मवाणियानि आपदा भवियप हिया माई उक्त पद परत वाक्य या फलश्रुति के यो प्रहल किया पा सकता है।मिकता यह कहा जा सकता है कि रचना सार सुन्दर और ज्ञानोन्मुख करने वाली है।
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