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(क) राजर्वत्र राग :
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इस युग का प्रारम्भ यद्यपि छठी शताब्दी से होता है, इसी शताब्दी को लेकर १२०० ई० तक देश में अनेक लव प्रारम्भ हुई घटनाओं की इस थलपुथल मे अनेक साहित्य प्रेमी विद्वानों को भी जन्म दिया है। विभिन्न प्रदेशों में उस समय जिन प्रसिद्ध वंशों का राज्य था उनके पारस्परिक युद्धों और उससे उत्पन्न विभिन्न स्थितियों का परिचय विभिन्न राजपूत राज्यों के रूप में विसरा पड़ा है। इन वंशों में मौसरी वंश, प्रतिहार वंश, गुर्जर, परमार, पाल, चालुक्य, चौहान, गाडहबार, और सौलंकी अत्यन्त प्रसिद्ध है । मौसरी यंत्र
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मध्य देश में उस समय अनेक प्रसिद्ध जनपद इन जनपदों में कुछ, पंचाल, सूरसेन, कौशल, काही विदेश, अंग, दक्षिण कोसल, वत्स, बेदि, अवंति तथा मत्स्य प्रमुख है। इन प्रदेशों में विभिन्न विभिन्न प्रकार की अनेक बोलियाँ हैं। जिनमें प्रमुख प्रमुख है-बड़ी बोली, क्रम, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मगही, ranड़ी बोली, बुन्देली, मालवी और जयपुरी। इन राज्यों में मध्य देव
मौरियों का राज्य था। साथ ही पंजाब, गुजरात प्रदेशों में गुरुवर बावि प्रमुख थी। गौवरी बंद बालों ने कमीज को खूब उमर उठाया। गुप्त साम्राज्य के पश्चात प्रमाकर वचन का लड़का हर्ष महूदी पर बैठा। वर्ष मे मालव देव के गुटों और ममय के शासकों को बार बार डराया। मालन, जयन्ति उसमे state forवाद में के राजा को हराकर सम्पूर्ण राजस्थान को अधीन कर लिया है। हर्षाली राजा का परिचय प्रविवृद्ध यात्री वेदी में मिलता है। अपने कई दूसों को मेवा तथा
अपने देश की कीर्ति का प्रकार फैलाया ।
साहित्य का विकास, पृ० १५, डा० हमारी प्रसाद द्विवेदी ।