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(८) रे मुमधिजं बचि देह सौख्य संपालि
जीव असंख्य तिर्ह मर येनि तमइ जंबालि अंबर पनि पुरिई नवि सायर सलिलेग (१०) अनि न faces ईधनि तिम जीव विषय सुन (९) काम कुंम कामिनि तमो, सारथिपति जिन कवियो
कला केलि लंतिय स्थूलभद्र गुण कवियो (चतुर्थ प्रबन्ध १४)
(१०) तिम जे उत्तम नारि मूंद पण मुंबइ पछड
देशी विषय विपाक मन कुडिधड विरभर पाई (१६)
इन उद्धरणों से पूरी रचना की विषय वस्तु जानी जा सकती है। इसी तरह कवि
में नर और नारी दोनों को संबोधा है तथा विषय समुद्र से संतरण करने की प्रत्येक विधि पर प्रकाश डाला है। पूरी रचना इसी प्रकार की पद्धति में लिखी गई हैमर नारी सम्बोध अपने आपमें एक महत्वपूर्ण कृति है।