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नारी संबोध
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(७) कामिणिकरण काई? विषय सौख्य नहीं खासत
सुख संतोष मानि शील धम्म छइ सासवम
पाणी प्रमि विषया मइ मिडिसि पन संसारि (दिव०प्र०४-१९)
जोड भोग विषय नडिया नरमि बडइ नर मारि
१- रे, जीव
राग में डूबकर मन मत रंग। अन्यता वामरस की पुतली केसाथ करोड़ो वर्ष विनष्ट करना है।
२- संसार में जो पुरुष रमनी के रूप से रंजित न हो विरक्त रहते हैं उनके नर नाम से शुद्ध होते हैं।
३- है सुन्दर पुरुष दरि को मोड़ की फाल समायदि इस रस में हवा तो यह समय कि तेरा संसार व्यर्थ गया ।
४- मूढ मनुष्य मूढ आदमी को रो रो के रुलते देबले वह गंवार जूकता है तो भी उसमें नहीं।
५- पूर्व मनुष्य व्यर्थ ही मुंह मरोड़ के भूलता है। वह साया की भांति काया,
के साथ में रहने वाले काल को देखा नहीं है निर्लब सिर पीला दाव गिर गया, स्वजनों ने मात्रा को दी है. शरीर विचित हो गया परन्तु फिर भी इ निव को लाज नहीं आती। ६- जो अग्नि शिवा के ऊपर रहा वह खुद aner कि जिसने कोशा के कटाव को ७- है कामिनी तर्फे और क्या करना है? में मानवी धर्म ही बात है ।
विदग्ध नहीं हो सका। परन्तु वह ऐसा बहाया और मन में शील धारण किया। विषय सुख वाश्वत नहीं है। सन्तोष पामिनी विषयों में पड़कर तुम संसार अनेक की नियों में चक्कर काटेrगी विषयों विरक्त हुए नरनारी इस विकयों नरक में पढ़ते है ऐसा तू जाम ।
(८) रीमध्ये जो देह का
अनुभव करते है योनि में कीचड़ में असंख्य जीव मरते हैं जैसे साकार की पूर्ति पवन नहीं कर सकता सागर पानी से मरता नहीं। बाग ईंधन से होती नहीं वैसे ही है जीव विषय से नहीं सकता।
(९) कामिनी के काम स्थूल के गुर्गों पर
जैसे साचि पति को को तथा कला केहि रेलवे को
(१०) बढी उत्तम स्त्री है वो पहले कदाचित मोड पाये पर फिर बोध विषय का परिनाम दे कर मन से नि हो जाता है।