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पहले कवि ने मारी, संसार आदि की नवरता स्पष्ट की है पडले सम्बोध में कवि ने मनुष्यों को नारी से बचने का आदेश दिया है या दूसरे सम्बोध में मारी को अपने बीत चरित्र के रूप में सिधावन दिया है। पूरी रचना में दोहा हद ही प्रधान रूप में प्रयुक्त हुआ है।
रचना की आलंकारिता आध्यात्मिकया, काव्यात्मक प्रवाह, पद लालित्य बथा साहित्यिक सौन्दर्य को समझने के लिए नीचे मर और नारी दोनों सम्बोधों से यही कुछ उद्धरण दिए जाते है। पूरी रखमाजाध्यात्मक विषय ज्या संसार की नाबरता का उपदेश दिया है। रचना के विविध पक और इम्टाला पुष्टस्य है:
नरसम्बोध
रे जीव रामिड लिं, जो मन रंगि पेखि
बारमिपूतलीय सिख, बरस कोडि मति (रममि अपि न स्त्रीया व पुरम समारि
नर नामिड मुह मे विरत्ता नर नारि (२०) (३सुन्दर बरिय बाये मोडक (दिववीय प्रबन्ध )
रधि बाक्लिो पाना सही मियो पब मालि 0ठी सीसीमा किन्या पूड वा बोर
एक नई मात्रट मा, बीस्मन पावतोड ७ Wी बाल, भूख महर मोडका
का सरिक काल, छाग मिचि पेहमी (वीय प्रबन्ध ३-४ बीबी जान, वारपया बाट पनि
मोनालिबास सिरीयीकरि वति (0 प्रति विनइ शिरि रहियों दहिया न प्रक्यिो अनि
मेरा डावीर बील थरइ मन रंग (1)