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वि पुनर्दडीह मल्ल मा निम्मिबं पूटिहिं बम्बड हि मरवणी बाबालि
करिया लि चक्कु परेवि, गाल कुल्लंगा मेहता भूक बलि अन्वेषि, प्रवहा नाहई गोशियह (19)
तो पावे लागेवि भर सरि माविमर बंधव मा मेहि बई जीळ भई बारिया उतक नाब न दे, बाहुबलि मरतहसरत रामै सरिसत नाय, भरसक परि आइयउ
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भावन तिब माकेर, चिंब पावी परोसरिती ब केवल पावेहु (ए) राज करता वेगाजिव (४८)
रचना की समाप्ति शान्त रस में हुई है। उक्त उद्धरणीं से रचना की काव्यात्मकता स्पस्टडो गावी है। बस्त: रचना पर्याप्त प्राचीन होने से इसका ऐतिहासिक और काव्यात्मक महत्व है।
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