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परिणिति वियर वीपरक बयावा करता ॐ दियह ऊपरइ मम्म थिया साल ३)
सील मंस डि धनु क्यास कुलह उन्जालिम माउं जड़ मार तो मारि पिध किवा न पीहर जा किय बाल विज पर नारि गाविय तिथि परमि तिमिम गार
मासेलिगमा
नवलक्व द्रमा थविव गठि इक्कुच्या नवधर
नयषिहि न पड़ा निकीय दा दिह कोयन कम्मु
नवलच द्रबह सिगन किमणि पिढतन दम्भ (१) अन्त में कवि आणु के विषय में भी दो पतिया उपलब्ध होती है रचना बत्कालीन प्रचलित न भाषा शत: प्रयोग कुद कठिन हो गए है। भोज के गन्दों का भी प्रयोग अधिक है आम की भाषा वीं शताब्दी की होने से उस पर अपांव का प्रभाव अधिक सम में मिलता है काव्य की दृष्टि सेरचना साधारण है।
निर्णय
खास बना प्रकार होगा। गि समाव क म होकर दूसरे पीर मानव बोल रखना उपाभ होतीराम की प्टिला माचार।
मारना न पनी विशेष गुणी को प्रस्तुत करती है।काव्या seरमा गधार में लिखी गई रचनाएं बयापि अधिक नहीपलदो टीमरमा मिली है उनमें से एक यो अव बाला है दूसरी