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________________ ८०२ नंदा विहि जिप अन्दिरहिं म विहि समुदायो नळ जिमपत्तिमूरि गुरु, विहि विण चम्म पसाशो (४-१५) शुरु गुण वर्ष में एक इसी प्रकार की रचना छप्पय सन्दपी मिलती है। जिसका नाम परतरगुण गुण बर्षन छष्य है उसका उल्लेख सन्द प्रधान रचनाओं में किया गया है। काव्य की दृष्टि से यद्यपि इस रचना में अधिक मत्कार परिलक्षित नहीं होता पर आध्यात्मिकता और गुरु की महत्ता पर प्रकाश डालने में प्रभात रना का पूरा महत्व है। कृपाल नारी संवाद संवाद संशक रचनाओं का विषय पारस्परिक साप इवारा मिली बस विशेष का स्पष्टीकरण करना होता है। यह बना वीं शताब्दी के उत्तराईय की उपलब्ध होती है। यह अपने प्रकार की पहली ही रचना है जिसमें विषय भी मौलिक है। वथा जीवन की महत्वपूर्ण परिस्थिति का स्पष्टीकरण करता है। स्वनाकार आम है जिसने *. १९५७लाका रासी रमा की दी प्रस्तुत पूरा कान्य ग्र सरली हिल गया है कि पार की मारी पारस्परिक बाद नाराज की प्रकृति पर प्रकाश डाला गया है। रखना नीति प्रधान की इष्टिमापि वा बहुब मात्वपूर्ण नहीं है फिर भी सिम की नातिन भाषा की प्राचीन तिर पसी रमानों नपानाच भाषा था कि विधा की दृष्टि से रशारणों - hि . मा मुख्य मा हिलि सि म पनि पानी हवि म देसि लिए ना नि पशु बगिय शोडिलक्क कोरि निकाल पूचा नाव विशु वैरिया बिया नब हार बम "
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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