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चो सकता है। सांसारिक रोम चोक सदैव उससे दूर रहेगें। इन्हीं आध्यात्मिक भावनाओं की ओर समाज को उन्मुख कर धर्म प्रचार करने के लिए कवि ने रचना लिखी है। मादा की अलंकारिकता लोकात्मक स्वरूप और प्रवाह को देखने के लिए कुछ उदाहरण दृष्टव्य है:
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(२)
मूढा मिन्डडु मूढपडू लागडु सुद्ध मन्त्रि
जो मल सूरि कहियो गक्छ जिम रिंग
अधिर माचिय बंधवह, अथिर रिषि गिव बासु जिणवल्लह दूरि पय नमो तोडइ भव दुइ पास (७-८)
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जो जिह कुल गुरु आइय वहि ते मति कति विरला जोsवि निवयणु जहिंगुण तहिं रवंति
हाडा इसम काल बहु तल बक्कत जोड़
Thus सुविडिय तपइ भित्तवि वयरित्रो होइ (१४)
माया मोह बच्छ जण इलहलं जिन विधि
जो जिन बल्ल सूरि को सिमु देव (ि१९)
वे कमा चुकवत्थ भरा संसार ह
वे दिन मिहिरे वहन्ति (१२)
निरोगी डोक् पूरि काम हो व विडिव
निका(२७)
विनिमय (२३)
रचना १५ किसी गई है की रचना में कवि ने इसी तरह संसार के इसों का वर्णन करके कीरा का मूल्यांकन किया है।अन्य में रक्नाकार
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वारकरे, पालिसम्म
विथ इन विदर गुण मम