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८.४
काव्य की दृष्टि से साधारण 1
अनाथी कुलक
पाटन
भंडार में उपलब्ध एक अप्रकाशित रचना अनामी कुलक है। रचनाकार अज्ञात है या कड़ियों में पूरी हुई है। भावा और काव्य की दृष्टि से रचना १४वीं शताब्दी की लगती है। अनाथी कुलक के विषय वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है इसमें संसार इस से मुक्ति प्राप्त होने के लिए साधना की विविध बताई गई है। रचना सामान्य है। आदि अन्य के उद्धरण देखिए:(1) पनि वामय वीर जिविंद ठोया लोय पयास दिविंदा अन्नचिय जान ममिति किंहि तुम्हा मी
(२)
केवलसरि सइवर भवेय क्रमिक्रमि सिधि सुख पामेइ
चढइ गुणइ जो यह चरित्तो विधि उ त जनम पवित्व संसार इस परिवरी गई बसि ते शिवपुरी
इस प्रकार रचना में कवि ने जाने वेदों का रहस्योद्घाटन किया है।वार से संवरण कैसे प्राप्त हो यह जानने के लिए धार्मिक और दार्शनिक इष्टि के रचना महत्वपूर्ण है। रचना की मावा १४ मादी की जन पाया है। मावा में प्रवाह तथा सरलता सर्वत्र परिलक्षित होती है। काव्य की दृष्टि से रचना में अधिक चमत्कार नहीं मिला।