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श्री जिनदत्य सूरि गुनग
अम्बिकादेवी आदेखि जानिय चिजुग जुग प्रधान
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संयमरी राबडइ जेहि, दीघ श्री जिन धर्मदान
इस प्रकार पूरी रचना ३० छन्दों में समाप्त हुई है और विविध ढंग से कवि ने गल के महापुरुष का सुन्दर गुण गान किया है। रंगीत की दृष्टि से भी कवि आदि रामों का समावेश किया है। पद वाले पर्यो का शिल्प विशेक
ने देवास, छाया, राजवल्लम, यात्री, रचना में यात्री के अन्तर्गत कवि के ट्रष्टव्य है:
नव गए तप बटवानि श्री अभयदेवरि जुन परो प्राटिउप मण पास श्री जयति भनि जेनरी ?
प्रत्येक पद में ए का बमत्कार पादपूर्ति के रूप में उल्लेखनीय है:
कवि ने रचना प्रकार में नवीनता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है मावा की तत्समता दृष्टव्य है । कवि के पदों का वर्णनक्रम पहले एक मेरा पद तथा फिर बुद्ध हरिगीतिका छन्द से चलता है। वर्मन क्रम की यह छन्द तथा पद पद्धति इसके पूर्व उपलब्ध नहीं होती। बरसता तथा मधुरता की दृष्टि से भी काव्य में कई सरस पद उपलध होते है|वर्मन मधु की दृष्टि से बाकी की पुनरुक्ति से बड़ा
हुआ सौन्दर्य इष्टव्य है:
साली नि नम सत्य बहार प जाने तक विचान्स बारी
साली पर कपिल
निरमल गुम मंढार
बरेली योग्य हु कि
नबर रो
पति श्री विनमरिज (२८)
१० * नहीं २०४५