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बरवरगच्छ पट्टावली।
१५थीं तादी के उत्तराईच में अन्तिम वाक में छोपचर विरचित एक काव्य खरतरगच्छ पट्टाकली उपलब्ध होता है।पट्टाकळी संलक रचनाओं में यह रचना पर्याप्त मात्व की है। ऐतिहासिक दृष्टि से रचना में बरतरगच्छ का इतिहास प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत बट्टाकली का बबसे बड़ा वैशिष्ट्य वह है कि यह विविध रामों में लिखी गई है। पाषा की दृष्टि से रचना परत
कवि ने गनर के कवियों की षट्टाकळी प्रस्तुत की है। राग और सन्द का समन्वय र करम ने अपनी अपूर्व काब्य प्रतिमा का परिचय दिया है।
-प्रथमश्री (चवल) राम
धन धन जिन (TRY) पाउ नान त्रिभुवन गम मा गाय गायु ता यमुवार गंगाजल निरमल महिवले महनार श्रीक्यर स्वामी गुरु अनुक्रमि बिहंदिवे, चंद्रकुल कपट जापिइए
मक कारागीय माहि अति गट सरतरम मसापिइए । इस तरह कवि ने विविध दो और रामों में बरबरगमा की सम्पन्नता पर प्रकाश डाला है।वो की इष्टि के इस काम कमात्य कवि ने
बरत और राज्यों का प्रयोग किया तारा वनामक काय होने मालकी ने लोटी गेटी कड़ियों के पद देकर प्रत्येक
रिपीडिया कन्द की ककड़ी का प्रयोग ना:पुरुष बल बार बार, कम पर परी काफी देखि मसानी मिला करो गैर मार देवपाक, प्रनि विनि प्रतिनीधिग
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- -विहा कि जैन काम भी भारद नाष्टा-.॥ सामान्य .nl