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________________ ७८७ सभी वीर्थ मन्दिरों और प्रसिद्ध स्थानों की चैत्य प्रतिभावों का वर्णन किया है। सागर १५ शताब्दी के कवि है अतः उनकी मरका प्रवाहपूर्ण वथा अत्यन्त सरल है। यह चैत्यपरिपाठ अप्रकाशित है रचना में पाटण बडल्लीपुर, रायपुर सेमुंजगिरि गिरनार तल्लोक, पालीताणा, नागढ़ बादि अनेक स्थानों के वर्णन है रचना afarers तथा सरल है। कवि ने वंदना से ही काव्य प्रारम्भ किया है: मनोरंगि भई आपण बुद्धिमानी व बार फिरीबंदियई चुंबनसामी # व बादि वे वंदिया भावसार बली ते जिने बंदिमा बार बार काव्य की दृष्टि से रचना के एक ही उदाहरण दृष्टव्य हैं: परमार्थद अपार बारबार मन उल्हसिय डिज गिरिसह सनि तर्हि उसीसम रायणि वलि प्रमुपाय त्रिणि प्रदक्षिण देकरे मयि सल्लोद्वार कर विमलमिरि वर हिरे समत गीकार, सार व्रत उरि आपण परि सिद्ध बेजि सुप्रेमि या संतान संचिता वा कुमविषय . समस्त देवून जागि -NTE - प्राय (4-6) हिडि डि मला पास देहिमाड डेवनी पूरी (१६) इस दौरान देविया महान क्रिमदेव मानत्वा देविया कागदाच समा महासागर बोधि लामा (११)
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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