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tea जग मोडियर लोयन अनित थाई तीरथ थोड़ा माहि बवि अवयव जहि ठाइ
देव कुलिय वाजतरहिं बात बिनवर देव अट्ठावन सम्मेय मुड कर तीरथ सेन
मह इयारिव भोरडिय गुरु र वडिठाइ गोवा मंडप जाइ करि गगहा निभिवई पान मंदीर वरि भाउमा दीदिन वेइय रम्म
वार विमलगिरि वाद तो डिय कम्प निमावंड
निय बरिय बति हि मम मा
इन मंडप दिन बाइकरि रक्सि जिनवर विज्ञ वामिने नमा
सावन स्
पूज सब जुन स
दीख किरि गिरनार
(१९:२३)
जन्त में कवि चैत्य प्रवाड़ी को सबसेपने को प्रबोधकर मंगल की कल्पना करता है:
पहजि चैवाडिनर पढ मुमईनि
सिरिया
निपाति
Rear are der वन है। काव्य की दृष्टि से अधिक चमत्कार उपलव्ध नहीं होताहै।
: श्री पेय परिपाठी :
भादराय में काँम अवतार विरचित परिवा हीरा के कवि थे और उनके द्वारा रचित
विविध की रक्ना २१ दों में लिखी गई हैरत है। रचना में कवि ने लगचम
१- पाटवार: विजय जी संग्रहः सत्क प्रति पा०२-१०।