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________________ ७८१ इस प्रकार कवि ने एक दोहा देकर उसके दिवतीय विषय चरण की पुनरावृत्ति करके मौलिक हद बनाने का प्रयास किया है।खमा भेटी, परस तथा अपच के शब्दों का आधिक्य लिप है वो उसकी प्राचीनवा सिद्ध करती है। पूरी रना भक्ति भाव में डूबकर गुरु दक्षिणा के ममें कणि ने लिखी है, ऐसा प्रतीत होता है। - श्रीजिनेश्वर सूरि चंद्रामा - १२ छन्दों की एक और रखना जिनावर पूरि चन्द्रायणा उपलब्ध हुई कवि प्रारम्भ में नमस्कार करके रचना प्रारम्भ करता है। इस स्का में भी जिन प्रबोपरि चन्द्रायया की भाति बिनेश्वर धरि की पूजा की गई है। पतु इसमें कवि ने क्या सम्पब दो परिवर्तन किया है। रचना गेय है तथा बार बार पुरे बद का प्रयोग बड़ा सुन्दर लगता है। माषा में अपज के शब्दों का बाहुल्य है। कवि रचना का प प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर देता है. हहि पंच परि विक अमिम्बा करिघरवरपारंगो पनि मरि पिपिक पूरि दिन विहान मुबमी रामगड भवन नि बाब निति करा कोदो होम मिनि विप्पा चिपि पर हरि पडो (१) बामेरमा पनि प्रबर की मामा और प्रभाव का वर्णन किया मा खना से भाषा वा सादरीके स्वराध की परिकति होगी। रमा का कती माय गर, पाप, म. ममापि गानों समेत रहने वाले मारवे वाले विनयर रिलिए लिली मई : प र बायो रे बर बर Eि पुष मणि करंडो परेपदिय निवास पर बारी, मुबई किन रियर पुीि बीरो को तिन धन राशी विसईया भूमि तिवाया
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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