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इस प्रकार कवि ने एक दोहा देकर उसके दिवतीय विषय चरण की पुनरावृत्ति करके मौलिक हद बनाने का प्रयास किया है।खमा भेटी, परस तथा अपच के शब्दों का आधिक्य लिप है वो उसकी प्राचीनवा सिद्ध करती है। पूरी रना भक्ति भाव में डूबकर गुरु दक्षिणा के ममें कणि ने लिखी है, ऐसा प्रतीत होता है।
- श्रीजिनेश्वर सूरि चंद्रामा -
१२ छन्दों की एक और रखना जिनावर पूरि चन्द्रायणा उपलब्ध हुई कवि प्रारम्भ में नमस्कार करके रचना प्रारम्भ करता है। इस स्का में भी जिन प्रबोपरि चन्द्रायया की भाति बिनेश्वर धरि की पूजा की गई है। पतु इसमें कवि ने क्या सम्पब दो परिवर्तन किया है। रचना गेय है तथा बार बार पुरे बद का प्रयोग बड़ा सुन्दर लगता है। माषा में अपज के शब्दों का बाहुल्य है। कवि रचना का प प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर देता है.
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