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है । पाश्चात्य साहित्य भी अंग्रेजी में बैठ को गाथा का रूप दिया जाने लगा है परन्तु लोकगीत को गाथा कहना बहुत समीचीन प्रतीत नहीं होता क्योंकि लोक गीत में सभी विशेषताएं नहीं होती जो गाथा में होती है।
जो भी हो, उक्त विवेचन से गाथा की प्राचीन परम्परा और कि का परिचय मिल जाता है। गाथा संज्ञक उपलध हिन्दी जैन कृतियों में छोटी छोटी रचनाएँ उपलध होती है जिनका विल्व भी माथा की मेयता से ओमोद गाथा संजक छोटी छोटी तीन रचनाएं मिलती है। यों तो उपलब्ध जैसा
तथा
माख्यान मूलक लगभग सभी चरित्र अन्थों को गाथा कहा जा सकता है। परन्तु गाथा नाम समिति की जाने वाली निम्नांकित रचनाओं का साहित्यिक दृष्टि से कोई विशेष महत्व परिचित नहीं होता उपलध रचनाएं है:
१- मंगल माथा
१- आशकिमाथा
३० कम्म भूमि गाथा
ये तीनोंरचनाएं जैसलमेर के बड़े मंहार की है। खनाएं अप्रकाशित है काव्य परिचय के होगा। इन रचनाओं में छन्द प्राधान्य है जान भी
लिए एक उदाहरण
गाँव है:
जो गंग विरराव ना विहि किन
जो मार देवि नर
जो
यह पावना बनाइवि सिम्ब
जो
गरम विकलाई दिन्च,
बदनावर हि
बोरिति
दृष्टि से ही
को
ही होगी। इस रनामों में स्थावत्य नहीं के बराबर है। का नाम मात्र है। माथा की परम्परा सम्बन्धी विवरण को कथात्मक या रक्तायों के लिए बना जा सकता है।वह भी सम्भव है कि रचनाओं की ठीक से सोच नहीं हो पाई
रक्तावों में याथा