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है। देवपाल का बल एवं विविध दृष्टान्दों से उसकी पुष्टि देसिए:
जो अगदड बलिय बापब का मोडइ मा बोला पित्तावा के उबामिया जोबर पि लोलप यह भय, चंति पद डाइनि मा पिशायर रक्षा जा मइ उमति वैवाह पणा स भवन का विसहर बीह बोर अरिमय जे किवि मिश्ध कारवा वह भारत हुँति सित्ता हिव ते rew कारया जमु पयभार परिय घर कंपाइ का मेसु नियमों गिरिटलटला वहि उछल विभउ मस्ति पुरनणे करि करवाह गहिवि करियजल, मुणहा कि हिंडए सुपरिय भिस्त परणय वरिउ पूरा भरि विडए बहुलावन्न पुन तिय सालय रमणी बिल्ल मोडिजी
विज्गार नरितु नारी गुण पय सय सस्ति नो हिओ (२-५) उक्त उधरण द्वारा वि की वर्णन शक्ति प्रवाह तथा भाषा का स्वाप आदि देखे जा सकते है। अन्त में कवि स्वयं अपना परिकादेकर रचना समाप्ति करता :
लिस कवि परि सम होकर दिव्यामल दिव्य न मी पर यो पटा पड जिrarea व न ए )
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।बापा
मासिकाने वाली पनावों की उपाकिमल गावामी बराबर र मासा मागे मादिगालीन विकास में गिन्नी रमाएं उपलब होती है
मारनामों के नाम के पी भाषा मा बोन्द सूचक है।