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________________ ७६५ । जम्बुस्वामी सत्कवा सत्कवस्तु नाम से अभी कोई दूसरा काव्य नहीं मिलता है। मह रचना जेटलमेर कन्हार' में है तथा श्री नाटा बी ने इसे प्रकाशित कर दिया है। पूरी रचना मैं नाव माण गम्बू स्वामी के जीवन चरित्र का वर्णन है। बम्बू स्वामी अधा स्वामी के पट्ट विम्यों थे। और वर्ष असार यही गन्तिम केवली थे। दिगम्बर और श्वेताम्बर बोनों सम्प्रदायों के वियों ने यम्वृस्वामी के जीवन को अपने काव्यों का विषय बनाया है। भाव में बीर कवि का सम्मामी बारिव विशेष लेखीय है। प्रस्तुब रमना का नामकरण कवि ने - बम् स्वामि सत्यवस्तु- किया है। खत्मनस्तु पर विचार करने पर यही स्पष्ट होता है कि इस मद का क्या श माम अति की हुई रचनावों की परम्परा का अलग से विवाह नहीं मिलता। कवि बन्धु स्वामी के परिव वर्षन करने की पर्धा या नाम में नवीनता प्रत करने के लिए ही संभवतः रखना का यह नामकरण किया है। हरी प्रमुख बार इसके नामकरण के लिय यह भी कही जासकती है कि क्योंकि कवि ने पूरी रचना बना ज्यो सिसी : जम्बू स्वामी सत्यवस्तु उसका नाम दिया है में पूरी रखना न्यू मामी वील, ल, वीवा और गाना Tara मोषादि का बना। पूरी रचना की पहचकी कोणीया की बार बोरगी यानी बीको पी कवि सरका प्रमाण माना गया। रला कर स्वागास प्रति बामागमा यी मावी की होगी।मामा को MIT Tोती। परिकाम्या - - - बाकीप्रविकिपिलबम धाब्यपुरवित।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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