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गे वीर सीस सूरीस या महिन मरिम मुषि मेक गुरु
सिरि गोया गगहा जयाविक या संच मान ( 0) इन बनारणों से स्पष्ट होता है जिाहोटी होने पर भी बरस है। पाषा प्रचारपूर्ण और अलंकारों की टा उसके सौरवर्य में इधि करती है।
अम्बिका सद
छन्द संबक रचनामों में अन्तिम रसा अम्बिका बन्द है। १५वीं शताब्दी के कवियों में छोटे छोटे ईगयों के रचयिता श्री कीर्तिमक की मह रचना. १४ की है। रमना यद्यपि पूरी उपलब्ध नहीं होती परन्तु मिला उसको देखने में स्पष्ट हो जाता है कि कवि ने छन्दों, प्राचारमा वर्णनों द्वारा काम को सरस बनाया है।
रबमा का विस अधिका देवी का मा बम है। कवि वन में अन्दर कायम हो । प्राय कवि हरिवीकि की की दी। अम्बिा सी के प्रकारे कमि र मागे का प्रयोग किया। पर और कोलकामा पदाळीरिगीकिा प्रारम्भिक उदारण देता
प्रशान मन्दिर अीि पर, सिर सिर शारिती कानि कपूर कील, ममावि पापिली
अपि सालमा गाली रला नारकर क रमा प्रकार में उपलब्ध होने वाली मामा की दृष्टि सबम्बिका बन्द ष्टम्यइस प्रकार इंद