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सुर भंडारि चिन्ता मणि दिव मपि जिम सोडइ मयपंगणि, विम जिग साममि सिरि गोयम गपि सा सिरि मो. गपि तिम जिण सामणि मोह जिम निषि चंद वर गुब्बर मामि महा मडिमंड लि बं बं बाड -1)
कवि ने गौतम के स्वरूप की पी सुन्दर प्रतिष्ठा की है। मान प्रवीक तिम रूप , जिनको देवता लोग नधा किन्नर भी नमन करते थे जो गुरु के परम
मक्स ये था बराबर के मेदों को जानने वाले सिध बुध त्या भान और मई के पद का जन कसे माले गौतम का मनि कवि ने प्रस्तुत किया है। वन की सजीवता और प्रवाहमा इष्टव्य है.
जो क्षण कमल बिमल कोमल व्यु सत्त इत्य सुपमा 'तियण जमवायण नयन मन पोषण लवषिण स्वनिहाय जिपि दिई उपवापिति नितु पारंवा काहिषय समाधि अपार सो प्रमनि और धन गुरु मोय पनि समर सविवार यो का परम पनि बानि बहान
मिरि र मपि गरि - यो जुना बिपिaam पनि यो मे मिलोम गावि aw मिरपि EिR विनय कन्धि
माहिर र अपिल ग्म रिविध सिदिस जानामि पयासह रोम सोग दोहगूग इरिय पूरंवरि नाई