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हुए है इसीलिए इनका नामकरण ऐसा कर दिया गया हो । यो वास्त्रीय दृष्टि लौकिक वर्ग के अन्तर्गत इन द प्रधान रचनाओं के लौकिक सम्दों का मूल्यांकन उनमें प्रयुक्त पक्षों के आयोजन से किया जा सकता है। कहीं कहीं इन् वरित वर्णन के लिए भी प्रयुक्त होता है। जो भी हो, लौकिक पक्ष को ही यदि इनके मूल में मानकर चला जाय तो समस्या कुछ हो जाती है और यह कहा जा सकता है कि लौकिक पद में अनुरंजन करने या प्रसन्न करने की दृष्टि सेडी इतरचनाओं के आगे इस पद का प्रयोग किया गया होगा। विभिन्न भंडारों से प्राप्त
रचनाओं का विश्लेषण रसवर्ड किया जा सकता है:
श्री गौतम स्वामी कंन्द
१४वीं शताब्दी के पूर्वीदूध में कवि मेनका ने विविध हिन्दी जैन रचनाओं का वजन किया है।जीरापल्ली पार्श्वनाथ का सीमंधर स्तवन जनित शान्ति स्तवन और जिमोद रि विवाह आदि रचनाओं के प्रसिद्ध निर्माता कवि श्री की विश्लेशन पूर्व अध्यायों में किया गया है।
इन रचनाओं के बरि
में भी कई रचनाएं किसी है।जिनमें गौवन
स्वामी श्री
श्री विनोद र प्राकृत दानवादि प्रमुख
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के प्रथम से ही प्रारम्भ होता नही किया जा रहा है।
इसकी प्रतिया प्रतिविवि बीकानेर
हैरों में है कुरमानों का कुवा
भीमानी
है
था। इस
के के लिए ही में कवि नेमका मास्थान प्रस्तुत किया हैली गौतम चर महावीर के पट्टति प्रकारविधि ठाम किया। साथ ही
१- प्रति विभाग जमीन प्रस्थालय, बीकानेर ।