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रामद
मन्द विषयक रचनावों में द मा अभिडिव की हुई कई छोटी दोटी रमाएं उपलब्ध होती है। इन रनामों के जाने छन्द द म्यमान हमारे इससे समान वा का पा सकता है कि विश्व में सिसी जाने के कारण हीद नाम का प्रयोग इनके आगे किया जाना होगा परन्तु सम्म प्रयोग की परम्परा पर्याप्त प्राचीन है। रचनायो बामे यह सब कामों में जैसे सद, मन्दागि बन्दानि आदि का यों में मिलता हारनामों को देखते पए या कहा जा सकमा है कालान्तर में छंद मामले कोई स्वर छंद विशेष भी बन गया हो।वस्तुतः इनरनाओं
जो सन्द सम्बन्धी विविध नाम मिलते है उनी की स्पष्ट होता है कि कवि ने मुनियों के या गान, प्रशस्ति मीठ और उल्लास में बकर वेष में जिन लोटी छोटी वरित मूलक रनाओं की व्यास्या की है उसी इमका नामकरण छन्ब, बालि या पानि किया गया हो। बहुत सम्भव है कि इनमें छन्द द क्सिी विन्द के लिए भी प्रयुक्त ना हो। बों सामान्याः रचनाओं में छन्द शब्द का प्रयोग। महल पहले से होगा का मासा है। वन म रिणव में विकास विमा
कमलामाबला हो या पादि काठीन न रखना
Agra माया रस प्राय रखाको किरा होगा। यो भन्दा भावादी ािनी किमयको इसी मार
होकार
पर किसी मी किमान
वा प्रसन्न करने की
का विधान में मिलावा तारिक इष्टियों को विभाग