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________________ ५२ युगीन परिस्थितियां और जैन धर्म के सिद्धान्तों का सामान्य परिचय देकर कृतियों के प्रयुक्त दार्शनिक सिद्धान्तों का परिचय भी दिया है। (१८) विविध दृष्टियों से मूल्यांकन : प्रस्तुत ग्रन्थ में रचनाओं की समयसाहित्य आलोचना करते समय प्रबन्ध, भाषा संस्कृति, धर्म तथा काव्य रूप एवं शैलियों सम्बन्धी तत्वों का भी मूल्यांकन किया गया है जो जैन साहित्य के स्वरूप, वैविध्य और लक्ष्य पर प्रकाश डालता है जिससे धर्म नैतिकता तथा चरित्र सम्बन्धी महत्वपूर्ण तथ्यों का स्पष्टीकरण हो जाता है। (१९) प्रत्येक शताब्दी के प्रत्येक चरण की प्रतिनिधिः ये रचनाएं प्रत्येक शताब्दी के प्रत्येक चरण का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा इनकी हस्तलिखित प्रतियां प्रामाणिक रूप में सुरक्षित मिल जाती है। अतः डर शताब्दी की इतनी अधिक रचनाएं एक साथ मिलने से इनकी प्रामाणिकता में कोई संदेह नहीं रह जाता। (२०) साहित्यिक और लोक भाषा काव्यः प्रस्तुत ग्रन्थ में जिन कृषिों का विवेचन है ये साहित्यिक हो है ही, साथ डी लोक भाषा मूलक पी। क्योंकि जैन कवि घर-घर, नगर नगर, प्राम-ग्राम अपनी raनाओं का लोक आस्थानों द्वारा प्रचार किया करते थे। अतः प्रस्तुत ग्रंथ में दोनों प्रकार की रचनाओं का विश्लेषण किया गया है। (२१) रचनाओं की ऐतिहासिकता age ग्रन्थ में अनेक कृतियां विशुद्ध ऐतिहासिक है जिनसे ऐतिहासिक स्थानों, gat यात्रार्थी संघ तत्कालीन राजा वास्कृतिक पर्वो पतिहासिक घटनाओं , आदि का परिचय मिलता है। ये रचनाएं विश्वसनीय है तथा इनसे तत्कालीन राजाओं का जैन जैन कवियों से सम्बन्ध होने के प्रभाव भी प्रस्तुत प्रबन्ध में दिए गए है। (२२) रसराज प्रस्तुत प्रथ में विवेच्य कृतियों की एक बड़ी मौलिकता यह भी है कि इसमें मराज श्रृंगार को न मानकर वान् को माना गया है। प्रत्येक कृति में धन की प्रधानता है। अनेक स्थानों पर इंगार चरम पर पहुंच जाता है तो भी में जाकर वह निर्वेद की क्रोड़ में पूर्ति है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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