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(१२) देवी छन्दः
देशीदों के इतिहास एवं परम्परा का प्रारम्भ करने वाले विविध छन्दों
पर प्रकाश डालकर संगीत अ"र छन्द के सम्बन्ध में इन आदिकालीन रचनाओं का योग
प्रस्तुत प्रबन्ध में स्पष्ट हो जाता है।
(aलोक साहित्य का अध्ययन:
इन्हीं रचनाओं में अनेक कृतिय लोक कवियों की है जिनके वागवेदाध एवं प्रवाह के साथ साथ मधुरता तथा प्रासादिकता का अनुमान इन लोक. परम्परान्य कलियों से सम्भव हो सकेगा। (१४) प्राचीनतम गदय रचनाएं:
प्राचीनतम पझ्य रचनाएं ही नहीं, भादिकालीन हिन्दी गद्य रचनामों का समानेड भी इसमें किया गया है। ताकि हिन्दी गद्य और उदभव के विकास में प्राचीन राजस्थानी, मालवी, जूनी गुजराती आदि का समन्वय स्पष्ट हो सके। गद्य की रचनामों का वर्गी करण तथा प्राचीन प्रतियों का अध्ययन भाविकालीन गद्य की सम्पन्नता पर प्रकार डालता है। (१५) अपच साहित्य का दिी के विकास में योगः
मपाश की प्राचीन रबमाए, उनका हिन्दी के निर्माण में योग, उत्तर अपांश की पुरामी मिदी की रवमानों के उदारण, मादिकात की इन काव्य धारागों का परवर्ती गल में विकास, कास्य प,उमकी परम्परा आदि का अध्ययन मादिकालीन रबनानों की भूमि का अध्ययन करने में योग देखा है। अवक की लगभग उपाय मी तियों मूल तत्वों को लेखक ने समझाने का प्रयास किया है। (११) आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की प्रमुख एवं गौव काव्य परम्पराएं:
न्य और राग की दृष्टि सेवा काव्य मोरे अतिरिका विशिष्ट काय मी पर स्वयं कम से प्रकार गला गया है साथ ही विविध गीति यो का मौष काय परम्परा बर्गत अध्ययन इस ग्रन्थ में प्रस्तुम दिया गया
() गीय परिस्थितियां और जैन सिधान्यों का परिणा
अन वाय पावल्यमसन ले लिय सत्कालीन