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________________ ७४९ कवि था जिसने बड़ीमानों में जनता की इत्तियों से रक्षा करने के लिए इस प्रकार के आदर्शवादी काव्य की सर्जना की है। जन जीवन में घुल कर समाज को उन्नयन की ओर ले जाना चाहता है। भाव और डीलवान प्राणी उसे प्रियहै जिससे वह समाज का नेतृत्व करना चाहता है उसने इन उपदेशों द्वारा समाज का प्रतिनिधि कार्य अपने हाथ में लिया है। अतः यही नहीं कि उसने केवळ पहापुरूषों के ही जीवन को अपने उपदेशों का विषय बनाया हो । इन महापुष्यों के अतिरिक्त छोटे परिवारों में जिन पुरुषों ने वान और सरियों से प्रेरित होकर उदात्त जीवन बनाया था बिताया है उन पर भी उसकी नजर गई है। ऐसा लगता है कि पूरा काव्य आद तथा चरित्रवान विविध महापुत्रों के विशिष्ट त्या निर्माणात्मक गुणों का एक इतिहास है। कुछ उदाहरण देखिए: वीर रोग सेवक सहमति परि कालसेन रिटराय जैन बिहू वाहिहि बधा विपि गुणि संग्रनरिटिं कि सामंत विदित्ता राम व्रत केवि तीन अरिदेखि पहा पाव पूरन मा कालो न इट्टा कि सन्द विधि सुरवर टिको वि (e) यही नहीं कवि ने स्वर महालों को परद्वराम, जमवदिन माधों की वा दी है: पर राम जनदगि मरना पाका मंद मररपि म केवि हरिवन पुरि र काहिहिं विविहित पनि भूम निक्कने एरिस डब के छोटे भाई गयसुकुमाल की असाधारण म डिविया पर भी प्रकाश डाला 1
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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