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कवि था जिसने बड़ीमानों में जनता की इत्तियों से रक्षा करने के लिए इस प्रकार के आदर्शवादी काव्य की सर्जना की है। जन जीवन में घुल कर समाज को उन्नयन की ओर ले जाना चाहता है। भाव और डीलवान प्राणी उसे प्रियहै जिससे वह समाज का नेतृत्व करना चाहता है उसने इन उपदेशों द्वारा समाज का प्रतिनिधि कार्य अपने हाथ में लिया है। अतः यही नहीं कि उसने केवळ पहापुरूषों के ही जीवन को अपने उपदेशों का विषय बनाया हो । इन महापुष्यों के अतिरिक्त छोटे परिवारों में जिन पुरुषों ने वान और सरियों से प्रेरित होकर उदात्त जीवन बनाया था बिताया है उन पर भी उसकी नजर गई है। ऐसा लगता है कि पूरा काव्य आद तथा चरित्रवान विविध महापुत्रों के विशिष्ट त्या निर्माणात्मक गुणों का एक इतिहास है। कुछ उदाहरण देखिए:
वीर रोग सेवक सहमति परि कालसेन रिटराय जैन बिहू वाहिहि बधा विपि गुणि संग्रनरिटिं कि सामंत विदित्ता राम व्रत केवि तीन अरिदेखि पहा पाव पूरन मा कालो न इट्टा कि सन्द विधि सुरवर टिको वि
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यही नहीं कवि ने स्वर महालों को परद्वराम, जमवदिन माधों की वा दी है:
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के छोटे भाई गयसुकुमाल की असाधारण म डिविया पर भी प्रकाश डाला
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